जशपुर,13 अक्टूबर 2021
BY योगेश थवाईत
जब कुत्सित राजनीति हावी हो जाए,समाज में अशांति, अराजकता की स्थिति दिखने लगे तो लेखक की लेखनी और कवि के भाव मौन होकर नहीँ रह सकते।जशपुर जिले के कुनकुरी में इन दिनों जाति बंधनों को मुद्दा बनाकर रावण दहन पर जमकर राजनीति की जा रही है जिससे हर वर्ग आहत है।इस लेख का ध्येय बस इतना है कि जाति बंधनों पर राजनीती न करते हुए शांतिपूर्ण माहौल में हम असत्य पर सत्य की पताका लहराएं।
रावण का दहन कौन करे यह महत्वपूर्ण नहीं बल्कि जरुरी यह है कि बुराई के प्रतीक,असत्य पर सत्य की जीत के पर्व को कितने आत्मीयता,हर्षोल्लास,शांति और शौर्य के साथ मनाया जाए।लिखने को बहुत कुछ है फिलहाल हमारे एक अभिन्न मित्र की रचना प्रस्तुत कर रहा हूँ इससे शायद कुछ हद तक आप समझ सकें .....
रावण पर भी राजनीति गरमा रही है,खड़े दशानन को भी शर्म आ रही है,
मैं तो बुराई का प्रतीक हूँ ,इसलिए जल रहा हुं।
"शुक्रगुजार हूं"
मेरी जलन आपका वोट बैंक बना रही है।
मुझे जलाओ खुशीयां मनाओ,
मेरी एक बुराई का तमाशा बनाओ
पर जरा खुद पर भी झाँकना
आप में क्या पवित्रता है,उसको भी आँकना।
याद रखना ज्ञानियों
मेरा अंत तो श्री राम के हाथों हुआ
आपसे होता देख,जातिवाद की बू आ रही है।
खड़े दशानन को भी शर्म आ रही है
रावण पर भी राजनीति गरमा रही है।
यह तो बस कवि की भावना है इसे आप जिस रुप में समझ सकें समझ लें।नवरात्र के नौ दिन शक्ति की उपासना हमें बस इतना सिखाती है कि इस साधना के दौरान संचित उर्जा,संचित शक्ति का सदुपयोग हम शांति,सेवा और समाज के नवनिर्माण में अधिक से अधिक कर पाएं।
रही बात रावण के पांडित्य की तो वह अलग विषय है जिसमें बैठकर चर्चा की जा सकती है।रावण के दहन में राजनीति और राजनीती में यज्ञोपवीत जनेऊ जैसे पवित्र आध्यात्म को लाना कहीं न कहीं सनातन परंपरा के उत्कृष्ट राजतंत्र पर सवाल खड़े करता है।सनातन परंपरा रही है जिसमें जाति,धर्म को लेकर राजनीति नहीं की गई बल्कि धर्मतंत्र से उत्कृष्ट राजतंत्र को चलाया गया।हांलाकि धर्म की चिंता हर सनातनी को करनी चाहिए यह आवश्यक भी है।वर्तमान समय में राजनीति का जो दूषित रुप देखने को मिल रहा है जो चिंता का विषय है।समस्या यह नहीं कि हम किस समाज के साथ खड़े हैं कौन हमारा साथ देता है बल्कि समस्या यह है कि हमें कहाँ मौका मिल जाए और हम अपना वोट बैंक बना लें अपनी राजनीति चमका लें।
प्रेम,सौहार्द्र के साथ आत्मीयता को शिरोधार्य करना सनातन परंपरा का अंश रहा है जिसे हम भूलते जा रहे हैं।जब सकारात्मक उर्जा हावी होती है तो वह बिना जाति बन्धनों के सबका कल्याण करती चली जाती है वह कोई भेदभाव नहीं करती फिर ऐसी कौन सी नकारात्मक शक्ति हमपर हावी है जो हमें भेदभाव के रास्ते की ओर धकेलती चली जा रही है यह सोचने का विषय है।
राजनीति के लिए हमारे पास तमाम मुद्दे भरे पड़े हैं जिनपर पक्ष विपक्ष दोनों खामोश रहते हैं इसके बावजूद ऐसे मुद्दे ढूंढे जाते हैं जिससे जाति,समाज को एकजुट किया जा सके अपनी राजनीति चमकाई जा सके।
हांलाकि यहाँ मुद्दा रावण दहन का है जिसपर राजनीति करना कहीं से भी ठीक प्रतीत नहीं होता ऐसे में जरुरत है ऐसे पहल की जिससे समाज में शांति,सद्भाव और भाईचारे के साथ रावण दहन कर असत्य पर सत्य की पताका लहराई जा सके।
विनम्र श्रद्धांजलि 🙏🙏🙏
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