Wednesday, June 9, 2021

स्वतंत्र लेख : "भ्रष्टाचार" की "जड़ों" को सींचता "जशपुर" योगेश थवाईत की कलम से .......

 


बात करें जशपुर जिले की तो एक अति दुर्गम,आदिवासी बाहुल,प्राकृतिक सौन्दर्य से परिपूर्ण,पिछड़े हुए क्षेत्र की परिकल्पना मूर्त रूप लेकर मष्तिष्क पटल पर चित्रित हो जाती है।यहाँ के सहज सरल और सीधेपन का लाभ निश्चित ही यहाँ की राजनीति को मिलता आया है और सतत मिलता रहेगा।जिस भविष्य की सुन्दर परिकल्पना के साथ जिले का गठन हुआ तब से लेकर आज तक उस स्तर तक जिले का विकास नहीं हो पाया जितना होना चाहिए

1 नवंबर 1956 को जब मध्य प्रदेश को भारत के एक नए राज्य के रूप में संगठित किया गया,तभी से जशपुर इसका हिस्सा बन गया। 25 मई 1998 तक जशपुर रायगढ़ जिले का एक हिस्सा बना रहा। मध्य प्रदेश के कई जिलों के व्यापक क्षेत्र के कारण 1992 में एमपी के मुख्यमंत्री सुंदरलाल पटवा ने राज्य में 16 नए जिले का गठन किया,जशपुर उनमें से एक था। न्यायिक हितों के कारण तत्काल इसकी घोषणा नहीं हुई और मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने 22 मई 1998 को 16 जिलों के निर्माण का ऐलान किया। जिसके बाद जिले के प्रभारी मंत्री श्री चनेश राम राठिया ने औपचारिक रूप से घोषणा की और जशपुर जिला 25 मई 1998 को अस्तित्व में आ गया

लगभग 22 वर्षों का लम्बा समय गुजरने के बाद भी जशपुर का चंहुमुखी विकास नहीं हो पाया।देखा जाए तो तमाम संभावनाओं के बावजूद आज तक जशपुर का स्वतंत्र अस्तित्व किसी एक क्षेत्र में स्थापित नहीं हो पाया।हांलाकि शासन प्रशासन कुछ छोटे बड़े कार्यों से सुर्ख़ियों में बना रहता है।मूलतः जमीनी हकीकत यही है जो सोचने को मजबूर करती है कि वाकई विकास हुआ है या बस बात पीठ थपथपाने वाली है

योजनाएं बड़ी बड़ी,वादे उससे भी बड़े बड़े,इरादों में दिखावा भी है,छलावा भी है,पर जब बात करने की आती है तो शुरु होता है भ्रष्टाचार का गन्दा खेल जो वादों इरादों पर पानी फेरकर अपने छलावों से भ्रष्टाचार की जड़ों को सींचने का काम करता है

बात आज की नहीं यह तो इतिहास रहा है और हो भी क्यूँ नहीं परिपाटी कहीं न कहीं से तो शुरु हुई है।बात लेन देन तक समझ आती है कि यह आपका प्रोटोकाल है बिना लेन देन शायद सम्बन्ध भी विकसित नहीं होते ऐसे में आपकी भी और देने वाले की भी मज़बूरी है कि वह ऐसा करे

सवाल यह उठता है कि क्या लेन देन के बाद आपकी जवाबदेही ख़त्म हो जाती है।चाहे वह जिले के विकास से सम्बंधित,लोगों की सुविधाओं से सम्बंधित कोई भी कार्य क्यों न हो ..? दरअसल सिस्टम ही कुछ ऐसा है कि कभी शासन आँख बंद कर लेता है तो कभी प्रशासन ..इस बीच लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ की आंख थोड़ी बहुत खुली रहती है जिसे पद,पैसे के दम पर दबाने की कोशिश की जाती रही है

मुद्दे सैकड़ों सामने आते हैं पर किसी भी शासन काल में जशपुर का मुद्दा प्रदेश ही नहीं पुरे देश में सुर्खियाँ बटोरता आया है।अब यहाँ के मामले भी हाइप्रोफ़ाईल और आई क्वालिटी के होते हैं।इसके बावजूद अब तक जांच के नाम पर क्या होता है ये सब को पता है।कुछ जाँच के लिए पेटेंट अधिकारी होते हैं जो किसी भी शासन काल में जाँच के मामले में अपनी कला का अद्भुत प्रदर्शन करते हैं।या तो मुद्दों की जांच ठन्डे बसते में चली जाती है या फिर मुद्दे में दोषियों को क्लीन चिट मिल जाती है

अब यहाँ समझने वाली बात यह भी है कि कोई एक दल पार्टी हो तो बात बने यहाँ तो पक्ष हो या विपक्ष थाली में बांटकर खाने की परंपरा बरसों से चली आ रही है।कुछ जिम्मेदार जमीनी नेता समय समय पर उभरते रहते हैं जिन्हें "न ऊधो के लेना न माधो के देना" इसके बावजूद मुखर होकर मुद्दों को सामने लाने का काम करते हैं।उनकी भी एक सीमा होती है जो चरम सुख तक नहीं पंहुच पाते और न ही  मुद्दे को निर्णायक ऊंचाई तक पंहुचा पाते हैं

अब बात करें जड़ों की.. भ्रष्टाचार वाली... जो आज से नहीं बहुत लम्बे समय से जमी हुईं हैं।यह इतना विकराल हो चुका है कि इसे हटा पाना किसी शासन सत्ता प्रशासन के बस का नहीं क्योकि ये तो सिस्टम बन चुका है

चाहे कोई भी सत्ता में हो सबको यही फालो करना है।दरअसल जब इस परिपाटी में जब हम  शामिल होते हैं तो यही भ्रष्टाचार की जड़ों को सींचने का काम करता है।जशपुर को भ्रष्टाचार का गढ़ कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी।कभी यह सत्ता विशेष का गढ़ हुआ करता था यह भी सही है पर इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि गढ़ यूँ ही नहीं बना करते चाहे वह सत्ता का गढ़ हो या भ्रष्टाचार का

सकारात्मक प्रयासों की और रुख करें तो शिक्षा,कृषि व मुलभुत सुविधाओं की ओर कुछ बेहतर कदम बढे हैं वहीँ स्वास्थ्य ,पर्यटन,स्वावलंबन,खेल व सुशासन के साथ कई क्षेत्रों में आज भी हमारे पिछड़ेपन के लिए भ्रष्ट तंत्र ही जिम्मेदार है।इसके साथ ही बड़ा सवाल आज भी बना हुआ है कि "क्या विहड़ता को सुगमता" में बदलने के बावजूद हम विनाश के मुहाने से दूर हैं ....?

अगली बार किसी नए मुद्दे के साथ .....फिर ...मिलेंगे...

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9 comments:

  1. अध्भुत लेखन,कुछ चुनिंदा लोग हैं जशपुर में जो इस माटी का मोल चुकाने के प्रयाश कर रहे हैं उनमें से एक आप भी हैं।

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  2. सटीक विश्लेषण

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  3. 15 साल के भाजपा कार्यकाल में मंत्री केंद्रीय मंत्री सांसद निगम मंडल जैसे महत्वपूर्ण पद रहते हुए भी जशपुर के साथ छल किया गया कुछ लोग बस निगल लिये कांग्रेस के सरकार बनते ही मुख्यमंत्री जी द्वारा 800 करोड़ पूरे छत्तीसगढ़ में ज्यादा जशपुर में घोषणा कर वादा पूरा किये

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  4. आपका लेख प्रासांगिक है, 100 में 60 का काम होता तो शायद हमारे जशपुर का दृश्य कुछ और होता।

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  5. निष्पक्ष ,सच की कसौटी पर , तराशा हुआ तथ्यों की सुनिश्चितता पर आधारित
    आज सच को झांकने की जरूरत है,
    बहुत ही सार्थक विश्लेषण, और विश्लेषक की भावना 👏👏👏

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  6. निष्पक्ष ,सच की कसौटी पर , तराशा हुआ तथ्यों की सुनिश्चितता पर आधारित
    आज सच को झांकने की जरूरत है,
    बहुत ही सार्थक विश्लेषण, और विश्लेषक की भावना 👏👏👏

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  7. सच्चाई से कोसो दूर नेताओ का और भ्रष्टाचार में डूबे प्रशासन का सटीक विश्लेषण किया है आपने

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